शासन तंत्र
घर के सदस्य आपस में लड़ते लड़ते माँ बाप को बांटकर घर छोड़कर चले जाते हैं।
जनता एक भीड़ की पहचान रखती है, भीड़ की अपनी पहचान गौण होती है, यही कारण शासन तंत्र की आवश्यकता ने शासक तन्त्र विकसित किया।
राजा, महाराजा, बादशाह से राजा तथा अंग्रेजों से गणतान्त्रिक तक।
गणतान्त्रिक एकता ३०० सीट की होने के बावजूद भी, हिन्दू समर्थक शासक होने के बावजूद भी अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं, आश्चर्यजनक है।
जब भी बीजेपी की सरकार होती है तब ही हिन्दू की परेशानियाँ १०० गुणा तक बढ़ जाती है, जब बीजेपी के ३०० सीट आने पर दु:खी हैं तो मैं समझता हूँ ऐसी सरकार का चुनाव ही क्यों करते हैं।
देश को नर्क से अधिक विभत्स दशा में ला खड़ा कर दिया है, गणतन्त्र है, लोगों ने चुना है, स्वाभाविक है, गलत तो नहीं है, लोगों को भोगना होगा या बदलना होगा, या आप सरकार का घेराव करें और बताएं कि मुझ (BL Sharma) जैसे समभाव रखने वाले लोगों को मृत्यु दण्ड दे दिया जाये।
यदि कानून बनता है तो, शासकीय प्रणाली है, अपराध नहीं होगा। भले ही शासक को निरंकुश कहा जा सकता है।
जो सरकार दोनों सदनों में बहुमत होने के बावजूद भी आपको सुरक्षा नहीं दे सकती है, जो सरकार चीन को अरुणाचल, गालवान, डोकलाम तथा "साउथ चाइना सी" में भारतीय सीमा में घुसने पर भी छूपकर कर बैठ गया हो तो आपको ऐसे शासक की कायरता से भय लगना स्वाभाविक है।
प्रधानमंत्री मोदी को तो जैसे सांप सूंघ गया है, बावजूद इसके कि भारतीय सेना विश्व में सर्वाधिक विशाल एवं सशक्त सेना मानी जाती है, शायद इस बात को आप अवश्य ही जानते हैं, बहुत बार विश्व स्तर पर पुरस्कार भी मिले हैं, सच्चाई को झुठला भी नहीं सकते हैं।
गत सात साल के कामों यदि सोने के पिंजरे में बन्द कर दे, तब भी सच्चाई बदल नहीं सकती है।
क्या आप जानते हैं ?, गत सात साल में ५ ट्रीलियन रूपयों के घपले हुऐ हैं।
एक बेटा बाप से अलग मत रखता है वहाँ आप साम्प्रदायिक विषयों पर समभाव रखने वाले लोगों को सुसंगत वैचारिक मतभेद के बावजूद, नदी के दो किनारे को मिलाने को एकता की संज्ञा देना चाहते हैं। पानी में लाठी मारने पानी अलग अलग नहीं हो सकता है।
मानव हो, या पशु हो, या प्रकृति हो -- असंगत विरोध, घृणा वैमनस्यता केवल आपदा जनक या संहारक का उपादान ही हो सकता है, और कुछ भी नहीं।
इसका एक दूसरा पक्ष भी है, एक जाति दूसरी जाति से वैसे ही घृणा करती है, जैसे कोई हिन्दू , मुस्लिम से करते हैं, क्योंकि समाज में कुछ ऐसे लोग हैं वे ही ऐसा करते हैं।
आपकी परमपराएं भिन्न हो सकती है, वैचारिक मतभेद भी हो सकतें हैं लेकिन वे घृणा तो कभी नहीं सिखाते।
जंगल में हिसंक पशु शेर होता, हिसंक होने बावजूद मनुष्य उसे चाहता है।
सांप जहरीला होता है लेकिन उसकी पूजा करते हैं, हाथी एक जानवर है, उसमें गणेशजी का रुपक दिखाई है, लोग कंस, हिरण्यकशिपु, दुर्योधन, धृतराष्ट्र जैसे मनुष्यों से हिंसक पशुओं से भी अधिक घृणा करते हैं, क्यों ?।
एक व्यक्ति गलत था सभी कौरव नहीं, जिन्हें हम पाण्डव से जानते हैं वे भी कौरव ही थे, सब कौरव घृणित नहीं थे।
अश्वत्थामा ब्राह्मण होकर भी शापित है कारण जानवर से भी घृणित काम किया।
जाति से पहचान नहीं बनती है, अन्यथा ब्राह्मण की जगह सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र जैसे क्षत्रिय का नाम नहीं आता।
अपने आपको खोजें।
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