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किसान की व्यथा

किसान की व्यथा। ये पैरों की‌ खूनी फटी बिवाई की पहचान बता रही है कि मैं उस भारत का ही किसान हूँ जो विश्व की प्रमुख पाँचवीं समृद्धशाली आर्थिक शक्ति कहे जाने वाले देश की एक प्रमुख पहचान है। मेरे अथक प्रयास तथा फटी बिवाई ने देश की उन्नति में शिर्षस्थ वैश्विक पहचान बनाने में सफल भूमिका निभाई है। मैं भूखा सोया हूँ, पूरे देश को खिलाकर, उन जवानों को खिलाकर जो देश की सीमा के प्रहरी है। मैं माँ के गर्भस्थ शिशु का भोजन हूँ, उसके जीवन का प्रथम निवाला भी मैं हूँ, मैं ही वह उदर हूँ  जो आपको जीवन देता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया है, उदर ही शरीर के सभी अंगों के जीवन का स्त्रोत एवं पोषक है। मैं पैरों को चलने की, हाथों में कलम थामने, आँखों से देखने, मस्तिष्क से सोचने की शक्ति का मुख्य उपादान तो हूँ ही, अपितु विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों, विद्वानों, मनीषियों, गुरूजनो के ज्ञान की शक्ति का माध्यम अन्न भी मैं हूँ, मैं ही उर्जा के स्त्रोत के रूप में धमनियों में प्रवाहित रक्त हूँ। राज नेताओं को मतदान की भीक्षा मांगने के लिए हाथ एवं वाणी शक्ति देने वाला अन्न हूँ मैं, म...